आपने एक गाना जरूर सुना होगा 'आमदनी अठन्नी खर्चा रुपइया। किसी भी चीज को खरीदने के लिए आप कागज के करारे करारे नोट खर्च करते होंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत के हर नोट में 'मैं धारक को.... रुपये अदा करने का वचन देता हूं' क्यों लिखा होता है? इस वचन का अर्थ क्या होता है और ऐसा नोटों पर क्यों लिखा जाता है।
हिल्टन यंग कमीशन की रिपोर्ट के बाद सेंट्रल असेंबली में ‘भारतीय रिज़र्व बैंक एक्ट, 1934’ पास हुआ था। इसके बाद 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अस्तित्व में आया। इसी एक्ट के तहत RBI को देश में करेंसी छापने की जिम्मेदारी दी गई। वहीं साल 1935 के पहले भारत सरकार ही नोटों की छपाई करती थी।
अगर आपने नोट को ध्यान से देखा होगा तो आपके 2 रुपये के नोट से लेकर 2000 रुपये के नोट तक मैं धारक को रूपये अदा करने का वचन देता हूं... जरूर लिखा होता है। ये RBI के गवर्नर की शपथ होती है कि जिसके पास भी ये नोट है। उसको हर हाल में उसकी लिखी गयी कीमत देने का दायित्व RBI के गवर्नर का है।
ये वचन यानी प्रॉमिसरी नोट करेंसी की वैल्यू को लेकर लोगों में एक विश्वास होता है कि इतनी कीमत के लिए वे इस नोट को खर्च कर सकते हैं। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। ये प्रॉमिसरी नोट आरबीआई की ओर से एक तरह का बिना शर्त का वादा होता है कि वो करेंसी होल्डर को इतनी ही रकम देने का उत्तरदायी है। अगर किसी करेंसी नोट पर आरबीआई गवर्नर के हस्ताक्षर के साथ ये प्रॉमिसरी नोट नहीं लिखा होता है, तो कोई भी देशी/विदेशी व्यक्ति इस करेंसी नोट को स्वीकर करने में संकोच करता या तो वो नकली होता है।
भारत में केवल 1 रुपये का नोट ही ऐसा है जिसमें भारत के गवर्नर के साइन नहीं होते है।और न ही इस नोट में ये वचन नहीं होता है। एक रुपये के नोट पर भारत के वित्त सचिव के साइन होते हैं।
दरअसल भारत में करेंसी नोटों की छपाई मिनिमम रिज़र्व सिस्टम यानी MRS के तहत होती है। साल 1957 से ये व्यवस्था लागू की गई थी. एमआरएस के तहत, भारतीय रिज़र्व बैंक को हर समय कम से कम 200 करोड़ रुपये की संपत्ति अपने पास रखनी होती है। इस 200 करोड़ रुपये में से 115 करोड़ रुपये गोल्ड के रूप में और 85 करोड़ रुपये विदेशी करेंसी के रूप में होनी चाहिए।
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