क्या आप ये सोच सकते हैं की आपके ब्लड में प्लास्टिक है. इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन दुनिया में पहली बार इंसानों के खून में प्लास्टिक के कण मिले हैं. हाल ही में एक स्टडी की गई है जिसमें ये पता लगा है कि हर हफ्ते ऑन Average 5 ग्राम प्लास्टिक आपकी बॉडी में पहुंच रही है. एक क्रेडिट कार्ड का वजन भी इतना ही होता है. कई लोगों में तो इससे कहीं ज्यादा प्लास्टिक पहुंच रहा है. जो काफी हार्मफुल है. ये हमारी बॉडी के लिए किसी टाइम बम से कम नहीं है.
रोजाना हम प्लास्टिक के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल किसी न किसी तरह से करते हैं. चाहे टूथपेस्ट हो, कॉस्मेटिक्स या फिर कपड़े धोने का डिटरजेंट. इन सबमें प्लास्टिक के छोटे छोटे से कण होते हैं. जो सीवेज के साथ नदी नालों में पहुंचते हैं और इन्हीं नदियों का पानी प्रोसेस हो कर हमारे घर के नलकों में पहुंचता है...जो बॉडी को काफी कमजोर बना रहा है. प्लास्टिक के महीन पार्टिकल्स को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है.
स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक में करीब 10 हजार तरह के केमिकल होते है. जो पूरी दुनिया में बिना रोकटोक मिलाए जा रहे हैं. चीन सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है, इसके बाद इंडोनेशिया है.
इंडोनेशिया के एयरलंग्गा विश्वविद्यालय के रिसर्चर वेरिल हसन का दावा है कि आज Human Body में माइक्रो-प्लास्टिक पहुंचाने का प्रमुख रास्ता समुद्री मछलियां बन चुकी हैं. अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में पहुंचे प्लास्टिक का वजन मछलियों के कुल वजन से ज्यादा होगा.
मलेशिया में साइंस यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ली योंग ये ने तो दावा किया है कि आधे से ज्यादा Human Organs में माइक्रो प्लास्टिक पहुंच चुका है. वैज्ञानिकों की ओर से जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, कैंसर से लेकर अंदरुनी अंग फेल होने की आशंकाएं जताईं है.
न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक ह्यूमन हेल्थ के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके अंदर के Polluting Substances कई बीमारियों से जुड़े हैं. इनमें दिल से जुड़ी और इनफर्टिलिटी के साथ-साथ डायबिटीज़, मोटापा और कैंसर शामिल हैं.
खाने-पीने की चीजों की प्लास्टिक पैकेजिंग और प्लास्टिक के प्लेट-ग्लास के साथ ये आ रहा है. ग्लोबल लेवल पर हर साल 11,845 से 1,93,200 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स (7.7 ग्राम से 287 ग्राम) हर व्यक्ति निगलता है. सबसे ज्यादा पैकेज्ड बॉटल-वाटर लेने वालों को खतरा है, Study बताती हैं कि बॉटल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक ज्यादा है. Pollution इसकी सबसे बड़ी वजह है. हमारे समुद्र, नदियां, मिट्टी, हवा और बारिश के पानी में प्लास्टिक पहुंच गया है.
ये कण आमतौर पर खाना, किसी ड्रिंक और सांस के जरिए और यहां तक कि स्किन के रास्ते से भी बॉडी में एंट्री मार सकते हैं. ह्यूमन बॉडी में एंट्री करने के बाद ये सूक्ष्म कण (5 मिमी से भी कम) डाइजेशन, रेस्पिरेशन और सर्कुलेटरी सिस्टम में चले जाते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मां के दूध तक में माइक्रोप्लास्टिक मिलने की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है. नीदरलैंड के वैज्ञानिकों को मांस के 8 में से 7 नमूनों में माइक्रो प्लास्टिक मिला, तो दूध के 25 में से 18 नमूनों में. समुद्री नमक, मछलियां खाने वालों को प्लास्टिक भी परोसा जा रहा है.
अब आप भी सोच रहे होंगे की आखिर इसका बचाव कैसे होगा दरअअसल माइक्रोप्लास्टिक की अहम वजह सिंगल यूज प्लास्टिक है.. करीब 98 देशों में 2022 तक इन पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध लगे हैं. ये तभी संभव है, जब प्लास्टिक का उपयोग घटेगा. इसलिए जितना हो सकें सावधान रहें.
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