बेबाक बोलने का अंदाज और बेहतरीन एक्टिंग को अगर एक ही व्यक्ति में तलाशे और जेहन में अन्नू कपूर का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। आज किस्सा एक्टर, डायरेक्टर, सिंगर, रेडियो जॉकी, एक अच्छे होस्ट अन्नू कपूर का जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर लोगों के दिलों में जगह बनाई।
साल 1983, उस वक्त अनु कपूर एनएसडी में थे। अन्नू कपूर को एक नाटक मिला जिसमें उनको 70 साल के बूढ़े का किरदार निभाना था। चैलेंज ये था कि अन्नू कपूर खुद मात्र 27 साल के थे। लेकिन इस नाटक में उन्होंने ऐसा शानदार काम किया सभी ने उनकी जमकर तारीफ की।
मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक अन्नू कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन दिनों ग्रेट डायरेक्टर श्याम बेनेगल फिल्म ‘मंडी’ की कास्टिंग कर रहे थे और वे भी इस नाटक को देखने आए थे। वे अन्नू कपूर की एक्टिंग के इतने मुरीद हो गए कि फिल्म ‘मंडी’ में काम दे दिया। ‘मंडी’ में शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नसीर साहब, अमरीश पूरी जैसे दिग्गज एक्टर थे। लेकिन अन्नू कपूर के छोटे से लेकिन अहम रोल जो एक डॉक्टर का था ने सबका दिल जीता। हालांकि इससे पहले भी वे साल 1979 में रिलीज हुई डायरेक्टर यश चोपड़ा की फिल्म ‘काला पत्थर’ से एक छोटे से सीन में दिखाई दिए थे। फिल्म मंडी के बाद डायरेक्टर गिरीश करनाड की साल 1984 में रिलीज हुई फिल्म 'उत्सव' और मृनाल सेन की फिल्म 'कंधार' में अन्नू ने छोटे-छोटे रोल किया। उत्सव फिल्म में किए गए कामिक रोल के लिए फिल्म फेयर अवार्ड में उनको नॉमिनेशन भी मिला। लेकिन मुश्किल ये थी कि ये सब फिल्में पैरलल सिनेमा की कैटगैरी में आती थी। जिसकी मास ऑडियंस नहीं होती है। जब टिपीकल बालीवुड मसाला फिल्मी जैसे दिलीप कुमार की 'मशाल', अनिल कपूर की 'चमेली की शादी', 'मि. इंडिया' और सनी देओल की 'बेताब' और 'अर्जुन' जैसी फिल्मों में काम मिला तो इसके निभाए गए किरदार आज भी लोगों के जेहन में बसे हुए हैं। इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर टीवी में आया ‘अंताक्षरी’ जिसको अन्नू कपूर ने होस्ट किया। घर-घर देखे जाने वाले इस शो के दौरान एनर्जी से भरपूर अनु कपूर लोगों का खूब एंटरटेनमेंट करते थे।
20 फरवरी 1956 में भोपाल में पैदा हुए अनु कपूर के पिता मदनलाल कपूर एक पारसी थियेटर कंपनी चलाते थे, जिनकी थियेटर से कोई आमदनी नहीं हो रही थी। मां कमल कपूर टीचर थीं। जिनको केवल 40 रुपये महीने सैलरी मिलती। इन आर्थिक तंगी के बीच अन्नू कपूर चाय बेचते। चाय का काम भी नहीं चला तो चूरन और लॉटरी के टिकट बेचने लगे। कुछ हालात सुधरे तो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया। अनु कपूर का असल नाम अनिल कपूर था। कहते हैं कि एक्टर अनिल कपूर की वजह से उन्हें अपना नाम बदलना पड़ा। साल 1992 में अमेरिका की रहने वाली अनुपमा से शादी की, लेकिन ये शादी एक साल बाद ही टूट गई। इसके बाद उनके जीवन में साल 1995 को अरुणिता मुखर्जी आई। लेकिन अनु कपूर चोरी-चुपके अपनी पहली पत्नी अनुपमा से मिलते रहते। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक ये सब पता चलने के बाद अरुनिता ने भी तलाक दे दिया और साल 2008 में अन्नू ने फिर से अपनी पहली पत्नी अनुपमा से शादी कर ली। संगीत की बेहतरीन जानकारी रखने वाले अनु कपूर एक अच्छे सिंगर भी हैं। इसके साथ ही हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर भी कमाल की पकड़ है। जब अनु कपूर बोलते हैं तो लोग उन्हें केवल सुनते रहते हैं। साल 2012 में आई फिल्म ‘विक्की डोनर’ में डॉक्टर बलदेव चड्ढा के रोल के लिए फिल्म फेयर का अवार्ड मिला। आने वाले समय में 'सब मोह माया है' और 'ड्रीम गर्ल-2' जैसी फिल्मों से ये लोगों को एंटरटेन करेंगे।
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