स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद एक लड़का अपने प्रिंसिपल से पूछने गया कि मैं आगे चलकर किस फील्ड में करियर बनाऊं।
प्रिंसिपल ने कहा - तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है। तुम पॉलिटिक्स या एक्टिंग में जा सकते हो। उस लड़के को सिनेमा से प्यार था तो उसने प्रिंसिपल की बात मानकर फिल्मों की राह पकड़ ली।
आज किस्सा सोहराब मोदी का। कहा जाता है कि उनकी फैन फॉलोइंग इतनी थी कि लोग केवल उनकी दमदार आवाज सुनने ही थियेटर में खिंचे चले आते थे।
साल 1950 जब सोहराब मोदी की फिल्म ‘शीश महल’ को मुंबई के मिनर्वा थिएटर में दिखाया जा रहा था। उस वक्त सोहराब मोदी भी वहां पर थे। ऐसा कहा जाता है कि वहीं पर मौजूद एक आदमी अपनी आंख बंद करके फिल्म देख रहा था। उस आदमी को देखकर सोहराब मोदी सोचने लगे कि फिल्म इतनी खराब है क्या कि ये आदमी आंखे बंद करके फिल्म देख रहा है।
सोहराब मोदी ने अपने असिस्टेंट को उस आदमी के पास भेज कर टिकट के पैसे वापस करने को कहा। लेकिन असिस्टेंट ने आकर सोहराब मोदी को बताया कि वो आदमी अंधा है और आपका बहुत बड़ा फैन है इसलिए वो थिएटर में सिर्फ आपकी आवाज सुनने आया है।
दमदार आवाज के मालिक सोहराब मोदी का जन्म दो नवंबर साल 1897 में हुआ था। तीन साल की उम्र में मां का निधन हो गया पिता सरकारी अफसर थे और वे काम के सिलसिले में बाहर ही रहते इसलिए सोहराब मोदी का बचपना अपने मामा के घर यूपी के रामपुर में बीता। पढ़ाई पूरी की और रामपुर से वे मुंबई आ गए। साल 1931 तक सोहराब मोदी नाटक कंपनी चलाते थे जब बोलती फिल्में जमाना आया तो आने लगीं तो थिएटर में भीड़ कम होने लगी।
वे अपने हिसाब से फिल्में बनाना चाहते थे इसलिए खुद की फिल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन साल 1935 में शुरू की। लेकिन उनकी शुरुआत की दो फिल्में 'खून का खून' और 'सईद ए हवस' फ्लॉप हो गईं पर उन्हें सीख ये मिली की लोगों की पसंद किया है। फिर साल 1938 में रिलीज हुई 'मीठा जहर' जिसमें सोहराब मोदी ने नशेबाजी का मुद्दा उठाया। सोहराब मोदी ने फिल्म का डायरेक्शन किया था। ये फिल्म हिट रही। बस, यहीं से चल पड़ा सोहराब मोदी का कारवां।
फिर साल दर साल उनकी पुकार (1939), भरोसा (1940), सिकंदर (1941), एक दिन का सुल्तान (1945), कुंदन (1955), जेलर (1958), मेरा घर मेरे बच्चे(1960), वो कोई और होगा(1967), श्याम बड़ा बलवान (1969), जलवा (1971), रजिया सुल्तान (1983) जैसी एक से बढ़कर एक फिल्में आई।
पारसी होने के बाद भी उनकी हिन्दी और उर्दू भाषा में बेहतरीन पकड़ थी। उनकी खासियत थी कि वे हर तरह की सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक फिल्में बनाते थे।
बॉलीवुड में लौह पुरुष के नाम से मशहूर सोहराब मोदी ने अपने पांच दशक के फिल्मी सफर में 38 फिल्में प्रोड्यूस की। 27 फिल्मों का डायरेक्शन और 31 फिल्मों में एक्टिंग की।
सोहराब मोदी की पत्नी मेहताब जो एक खुद एक बेहतरीन अदाकारा थी उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म सोहराब मोदी के लिए कमजोरी थी और उनकी इसी कमजोरी का लोग फायदा भी उठाते थे। फिल्म मेकिंग के एडवांस पेमेंट की वजह से उन्हें भारी नुकसान भी होता था। जिंदगी के आखिरी पलों में सोहराब मोदी को बोन मैरो कैंसर हुआ और 86 साल की उम्र में साल 1984 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
फिल्म एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर कभी ईमानदारी से इंडियन फिल्मों का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें एक पूरा का पूरा अध्याय सोहराब मोदी का होगा।
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