‘मैं ट्रिब्यून अखबार के लिए कार्टून बनाता हूं, और कॉलम लिखता हूं। जिसकी वजह से ही उसकी बिक्री घटती जा रही है।’
जो अपने आप पर हंसने और मजाक उड़ाने की ये कला रखते थे। देश के मौजूदा हालात पर व्यंग्य करके माहौल को तब रंगीन कर देते थे जब ज्यादातर घरों में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होता था। आज कहानी 'किंग ऑफ सटायर' जसपाल भट्टी की, आम आदमी की समस्याओं पर कॉमेडी का तड़का लगाकर पेश करना उनकी खासियत थी।
80 का दशक जब सिर्फ दो ही सरकारी चैनल होते थे - दूरदर्शन और डीडी मेट्रो। उस दौर में आज की तरह न तो ताम झाम वाले सेट हुआ करते थे और ना ही डबल मीनिंग वाली कॉमेडी। तब अपने शो ‘उलटा-पुलटा’ से जसपाल भट्टी खूब मशहूर हुए। 90 के दशक में वे दूरदर्शन के लिए एक और कॉमेडी शो ‘फ्लॉप शो’ लेकर आए। इसमें वे तरह-तरह के किरदार निभाते। इसी शो के जरिए वे आम लोगों की समस्याओं को बहुत ही खास और खूबसूरत अंदाज में पेश करते और देश के उस समय के माहौल को लेकर व्यंग्य करते। इसी अंदाज से लोग उनसे जुड़ाव महसूस करने लगे। एक रिपोर्ट की मानें तो उनके राजनीतिक व्यंग्य से बौखलाए नेताओं ने 10 एपिसोड के बाद उनका शो, "फ्लॉप शो" बंद करवा दिया। लेकिन तब तक इस फ्लॉप शो के जरिए जसपाल भट्टी घर-घर अपनी पहचान बनाकर हिट हो चुके थे।
3 मार्च साल 1955 में अमृतसर, पंजाब में जन्मे जसपाल भट्टी बदलते वक्त के साथ फुल टेंशन, हाय जिदंगी वाय जिदंगी, करिश्मा, ढाबा जंक्शन, थैंक्यू जीजा जी जैसे कई शो लेकर आए। वे अपने शो की स्क्रिप्ट भी लिखते, उनका डायरेक्शन भी करते और उसमें एक्टिंग भी करते।
पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले जसपाल भट्टी को कॉमेडी से प्यार था। कॉलेज के दिनों में उन्होंने नॉनसेंस क्लब बनाया और नुक्कड़ नाटक किए । इस क्लब से कई लोग जुड़े और उनके स्ट्रीट शो काफी पसंद किए गए।
जसपाल भट्टी चंडीगढ़ में ट्रिब्यून न्यूज़ पेपर में कार्टूनिस्ट थे। वे कार्टून से सरकारी सिस्टम पर व्यंग्य करके अपनी बात लोगों तक पहुंचाते। टीवी पर झंडे गाड़ने के बाद जसपाल भट्टी ने फिल्मी दुनिया में भी हाथ आजमाया। साल 1994 में रिलीज हुई फिल्म 'वांटेड' उनकी डेब्यू फिल्म थी। इसके बाद 'फना', 'कुछ मीठा हो जाए', 'कुछ ना कहो', 'कोई मेरे दिल से पूछे', 'हमारा दिल आपके पास है', 'आ अब लौट चलें', 'इकबाल', 'कारतूस' जैसी करीब 25 से ज्यादा हिंदी और पंजाबी फिल्मों में छोटे-बड़े रोल किए। साल 1999 में उन्होंने पंजाबी फिल्म 'माहौल ठीक है' बनाकर फ़िल्म डायरेक्शन में कदम रखा। इस फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठी क्योंकि कि इसमें पुलिस अफसरों के शराबी और भ्रष्ट होने की खिल्ली उड़ाई गई थी।
साल 1985 में सविता भट्टी से शादी की। फ्लॉप शो को उनकी पत्नी सविता ने न सिर्फ प्रोड्यूस किया लेकिन उसमें अभिनय भी किया।
जसपाल भट्टी को आम आदमी की आवाज माना जाता था। सबको बरसों तक हंसाने वाले जसपाल 25 अक्टूबर 2012 में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए और दुनिया से चले गए। उनके निधन के साल 2013 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
जसपाल भट्टी वो शख्सियत थे जिसने हमें तब हंसाया जब हमें स्टैंड अप कॉमेडी, ओपन माइक आदि शब्द भी मालूम नहीं थे। तब वे हंसाते-हंसाते राजनीति, व्यवस्था और समाज पर कटाक्ष करते।जसपाल भट्टी जैसे लोग दुनिया से चले जाते हैं लेकिन उनका फन, उनकी कला, उनकी अदाकारी अमर हो जाती है।
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