इंडिया में सिजेरियन या सी-सेक्शन डिलीवरी में बढ़ोत्तरी तेजी से बढ़ती जा रही है. ये हालात किसी एक राज्य में नहीं बल्कि कई राज्यों में दिखे है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों या क्लीनिकों में ही सिजेरियन के केस ज्यादा आते हैं. सरकारी अस्पतालों की भी यही स्थिति है. दोनों का बराबर का योगदान है. हेल्थ मिनिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार 2021-22 में पब्लिक हॉस्पिट्लस में 15 फीसदी से ज्यादा की सिजेरियन delivery थी जबकि प्राइवेट अस्पतालों में ये संख्या लगभग 38 फीसदी तक पहुंच गई. सिजेरियन डिलीवरी आसान भाषा में कहे तो बच्चे का जन्म ऑपरेशन के जरिए होता है. जो अब लगातार बढ़ गई है. इसकी गवाही सरकारी आंकड़े दे रहे है. भारत में सी-सेक्शन का बढ़ता चलन WHO की गाइड लाइंस का भी उल्लंघन करता है. क्योंकि WHO का कहना है किसी भी देश में सी-सेक्शन से डिलीवरी 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
सरकारी से ज्यादा प्राइवेट अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी
Health Management Information System की रिपोर्ट बताती है कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में प्राइवेट अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी बहुत ज्यादा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अनावश्यक सी-सेक्शन एक ओवरलोडेड हेल्थ सिस्टम में रिसोर्सेज को अन्य सर्विस से दूर खींच लेता है. बता दें कि Health Management Information System देश भर में facility level के हेल्थ डेटा के लिए नोटिस का एक खास सोर्स है.
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे ज्यादा केस
सबसे ज्यादा सी-सेक्शन डिलीवरी प्राइवेट सेक्टर में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में दर्ज की गई. इसके बाद लगातार दो सालों तक त्रिपुरा का स्थान रहा. 2020-21 में, अंडमान ने प्राइवेट फैसिलिटीज में 95.45 प्रतिशत सिजेरियन डिलीवरी की जो 2021-22 में बढ़कर 95.56 प्रतिशत हो गई. त्रिपुरा ने 2020-21 में ऐसी डिलीवरी का 93.72 प्रतिशत दर्ज किया. 2021-22 में यह आंकड़ा 93.03 फीसदी पर पहुंच गया. पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने निजी सुविधाओं में किए गए सी-सेक्शन मामलों के हाई परसेंटेज की सूचना दी. पश्चिम बंगाल ने 2021-22 में 83.88 प्रतिशत मामले दर्ज किए, उसी साल ओडिशा ने 74.62 प्रतिशत मामले दर्ज किए. कई राज्यों ने प्राइवेट फैसिलिटीज में दो सालों में सी-सेक्शन में पांच से 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी.
सी-सेक्शन में डिलीवरी के आंकड़े
राज्य 2020-21 2021-22
तेलंगाना 55.33 54.09
जम्मू-कश्मीर 46.45 48.97
गोवा 45.61 46.57
तमिलनाडु 44.09 46.94
लक्ष्यदीप 43.52 47.29
केरल 42.21 42.41
आंध्र प्रदेश 41.81 42.15
पंजाब 41.77 43.42
सिक्किम 40.97 48.97
WHO ने दस संकेत बताएं हैं जिनके आधार पर सीजेरियन का निर्णय लिया जाना चाहिए. इन्हें रॉबसन क्राइटेरिया कहा जाता है. WHO की 137 देशों के आंकडे की रिपोर्ट में ये तथ्य पाया गया है कि दनिया भर में केवल 14 देश ही ऐसे हैं जहां मानक के अनुरूप सीजेरियन किया जाता है. कई बार डॉक्टर्स भी लास्ट मूमेंट तक नॉर्मल डिलीवरी के लिए ही प्रयासरत रहते हैं पर स्वास्थ्य के जोखिमों के चलते वे सी-सेक्शन का निर्णय भी लेते हैं.
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे
अगर मां और बच्चे को जान का खतरा हो तो, सी सेक्शन से बेहतर कुछ नहीं होता.
प्रि-मैच्योर डिलीवरी के लिए सी-सेक्शन वरदान माना जाता है.
किसी तरह की स्वास्थ्य समस्या में सिजेरियन ही बेहतर माना जाता है. मसलन ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी या थायरॉयड.
अब तो वैसे भी सी-सेक्शन का फैशन सा चल निकला है. यदि खुद को पता हो कि हमें सी-सेक्शन डिलीवरी ही करवानी है तो दिन-समय वगैरह पहले से तय किया जा सकता है, और अब लोग ऐसा करते भी हैं.
सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान
सी-सेक्शन के बाद रिकवरी में समय लगता है.
महिलाओं में खून की कमी हो सकती है.
फीडिंग के लिए समय ज्यादा लग सकता है. क्योंकि खुद से उठने-बैठने में दिक्कत होती है.
नॉर्मल डिलीवरी की अपेक्षा सिजेरियन का खर्चा ज्यादा होता है .
अगर पहली प्रेग्नेंसी सिजेरियन हो तो दूसरी बार भी सिजेरियन का ही खतरा रहता है.
सिजेरियन के बाद कभी-कभी शिशु को पीलिया का खतरा हो सकता है.
इस स्टोरी को डॉक्टर से कंस्ल्ट करके लिखा गया है.
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